भारत माता
1) सुमित्रानंदन पंत जी का कवि परिचय लिखिए?
ज) कवि परिचय : भारत माता नामक इस कविता के कवि श्री 'सुमित्रा नंदन पंत' जी हैं।वे हिंदी साहित्य में प्रकृति वर्णन में "बेजोड़ कवि " तथा " प्रकृति के सुकुमार कवि " के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका जन्म हिमालयों के गोद में रहनेवाले उत्तरा खंड के अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी नामक गांव में सन् 1900 ई.में हुआ था । तथा बचपन में ही इनकी माता की मृत्यु होने से प्रकृति की गोद में इनका पालन पोषण हुआ । इन्हें "चिदंबरा " नामक रचना पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला । इनकी मृत्यु सन 1977 ई. में हुई ।
2)भारत माता कविता का सारांश लिखिए ?
ज) कवि परिचय : भारत माता नामक इस कविता के कवि श्री 'सुमित्रा नंदन पंत' जी हैं। इनका जन्म हिमालयों के गोद में रहनेवाले उत्तरा खंड के अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी नामक गांव में सन् 1900 ई.में हुआ था । इनकी मृत्यु सन 1977 ई. में हुई ।
सा रां श :
कवि पन्त कहते है कि - भारत माता गाँवों में निवास करती है, अर्थात् सच्चे अर्थों में भारत गाँवों का देश है,
तथा गाँवों में ही भारत माता के दर्शन हो पाते हैं। यहाँ पर खेतों में हरियाली फैली रहती है ,और उनमें अनाज
लहराता रहता है, परन्तु इसका हरा आंचल मैला-सा अर्थात् मिट्टी से धुला रहता है, अर्थात् यहाँ गाँवों में
मिट्टी और धूल रहती हैं।
गंगा और यमुना में भारत माता के आँसुओं का जल है, भारतीयों की दरिद्रता -दीनता एवं श्रमनिष्ठा का जल
बहता है। भारतीयों की दीनता को देखकर मानो भारत माता करुणा के आँसू बहा रही है। वे आँसू ही गंगा -
यमुना आदि नदियों की जलधारा के रूप में प्रवाहित हो रहे हैं। भारत माता मिट्टी की प्रतिभा अर्थात् दरिद्रता
की मूर्ति है तथा सदा उदास एवं दुखिया दिखाई देती है।
कवि वर्णन करते है कि भारतमाता की दृष्टि दीनता से ग्रस्त, निराशा से झुकी हुई रहती है, इसके अधरों पर
मूक रोदन की व्यथा दिखाई देती है। भारत माता का मन युगों से बाहरी लोगों के आक्रमण, शोषण, अज्ञान
आदि के कारण विषादग्रस्त रहता है। इस कारण वह अपने ही घर में प्रवासिनी के समान उपेक्षित, शासकों
की कृपा पर निर्भर और परमुखापेक्षी रहती है। यह भारत माता का दुर्भाग्य ही है।
कवि वर्णन करते हुए कहते है कि भारतमाता की तीस करोड़ सन्तान गरीबी के कारण नंगे बदन है, ये आधा
पेट भोजन मिलने से व्यथित, शोषण से ग्रस्त तथा प्रति रोध करने में असमर्थ हैं। ये अन्धविश्वासों से ग्रस्त
होने से अज्ञानी हैं, असभ्य, अशिक्षित एवं गरीब हैं। ये अत्याचारी के सामने सदा झुके हुए – दबे हुए रहते
हैं। भारतमाता पेडों के नी चे रहती हैं, अर्था त् भा रतवा सी गरीबी के कारण पेडों के नीचे निवास करते हैं,
इनके पास उचित आवास-व्यवस्था नहीं है तथा ये खुले आसमान के नीचे सोने के लिए विवश हैं।
कवि कहते है कि भारत भूमि पर सोने के समान मूल्यवान् धान उगता है, फिर भी आम भारतीय नागरिक
या हर कृषक अत्या चारी शासकों एवं शोषकों के चरणों में लोटता है, उनका गुलाम बना रहता है।
भारत के किसान का मन धरती के समान सहिष्णु और कुंठा ग्रस्त है, वह करुण विलाप से काँपता हुआ भी
अधरों से मन्द हास्य के साथ मौन रहता है।
शरत्काली न चन्द्रमा जैसे राहु से ग्रस्त होने से धूमिल लगता है, उसी प्रकार विदेशी शासकों की
बर्बरता एवं अन्याय से भारतीयों का भाग्य रूपी चन्द्रमा सदाग्रसि त रहता है। आशय यह है कि प्राकृतिक
सौन्दर्य से सम्पन्न होने पर भी भारतीयों का जीवन कष्टों से घिरा रहता है।
कवि वर्णन करते हुए कहते है कि वि देशी शासकों और शोषकों से भारत माता का परिवेशचिन्ता ग्रस्त रहा ,
उसके सामने कहीं कोई आशा की कि रण नहीं है,निराशा -चिन्ता से उसकी भौंहें मुडी हुई व नेत्र झुके हुए हैं।
इस कारण भारत माता के मुख की शोभा छाया ग्रस्त या कुहरे
हे भारत माता ,तुम्हारी संतान पंचशील में लीन है,और विश्व शांति के व्रतधारी हैं। युग - युगों से
हमारे गृह-आंगन और धन का हरण हो रहा है । यह भारतवासी कब जागृत होंगे । यह जन कब
प्रगति पथ पर चलेंगे । हे जीवन विकासिनी । सोचो तुम सदा अपनी सोच में ही मगन रहती हो ।अपने
पुत्रों को जागृत कर ,प्रगति मार्ग पर अग्रसर करो ।
भारतवासी संगठित होकर विदेशियों को आक्रमण से संघर्ष करें ।आज भारतवासियों को सुंदर तन,
श्रद्धा से दीप्त मन, धरती के प्रति सतत् अथक् - समर्पण चाहिये। भारत माता सारी धरती पर तुम
अपनी प्रकृति से और कला ओं से सतत् विलासित हो और आनंद रस लीन होनेवाली विलासिनी
हो ।
विशेषताएं :
* कवि की भाषा सुंदर है एवं भाव गंभीर है।
* भारत माता कविता में कवि अद्भुत ढंग से उस समय की परिस्थितियों का वर्णन किया है।
* कवि की लेखन शैली सहज और सुंदर है।
* आज़दी से पहले लोगों की निर्धनता एवं उदासीपन का अद्भुत वर्णन किया गया है।
संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए ।
1) भारत माता ग्राम वासिनी ......शुचि श्रम जल।
ज) कवि परिचय : "भारत माता" नामक इस कविता के कवि श्री 'सुमित्रा नंदन पंत' जी हैं। इनका जन्म हिमालयों के गोद में रहनेवाले उत्तरा खंड के अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी नामक गांव में सन् 1900 ई.में हुआ था । इनकी मृत्यु सन 1977 ई. में हुई ।
संदर्भ : इसमें कवि ने भारत की दुर्दशा एवं भारतीयों की हीन स्तिथि को प्राकृतिक परिवेश के साथ वर्णन किए हैं।
व्याख्या : कवि पन्त कहते है कि - भारत माता गाँवों में निवास करती है, अर्थात् सच्चे अर्थों में भारत गाँवों का देश है,
तथा गाँवों में ही भारत माता के दर्शन हो पाते हैं। यहाँ पर खेतों में हरियाली फैली रहती है ,और उनमें अनाज
लहराता रहता है, परन्तु इसका हरा आंचल मैला-सा अर्थात् मिट्टी से धुला रहता है, अर्थात् यहाँ गाँवों में
मिट्टी और धूल रहती हैं।
विशेषताएँ : * इस कविता में कवि का वर्णन अद्भुत है।
* सुमित्रा नंदन पंत जी की भाषा सरल है।
* पंत जी प्रकृति के बेजोड़ कवि माने जाते हैं।
* पराधीन भारत की दुर्दशा का वर्णन अत्यंत चित्रात्मक रूप से किया गया है।
2) शील मूर्तिमूर्ति....भू पथ प्रवसिनी ।
कवि परिचय : "भारत माता" नामक इस कविता के कवि श्री 'सुमित्रा नंदन पंत' जी हैं। इनका जन्म हिमालयों के गोद में रहनेवाले उत्तरा खंड के अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी नामक गांव में सन् 1900 ई.में हुआ था । इनकी मृत्यु सन 1977 ई. में हुई ।
संदर्भ : इसमें पराधीनता काल में भारत की जो दुर्दशा थी, उसका भावपूर्ण तथा यथार्थ चित्रण किया गया है।
व्याख्या : कवि वर्णन करते है कि भारतमाता की दृष्टि दीनता से ग्रस्त, निराशा से झुकी हुई रहती है, इसके अधरों पर
मूक रोदन की व्यथा दिखाई देती है। भारत माता का मन युगों से बाहरी लोगों के आक्रमण, शोषण, अज्ञान आदि के कारण विषादग्रस्त रहता है। इस कारण वह अपने ही घर में प्रवासिनी के समान उपेक्षित, शासकों की कृपा पर निर्भर और परमुखापेक्षी रहती है। यह भारत माता का दुर्भाग्य ही है।
विशेषताएँ : * इस कविता में कवि का वर्णन अद्भुत है।
* सुमित्रा नंदन पंत जी की भाषा सरल है।
* पंत जी प्रकृति के बेजोड़ कवि माने जाते हैं।
* पराधीन भारत की दुर्दशा का वर्णन अत्यंत चित्रात्मक रूप से किया गया है।
3) तीस कोटि सुत , अर्ध ..... तरुण निवासिनी
कवि परिचय : "भारत माता" नामक इस कविता के कवि श्री 'सुमित्रा नंदन पंत' जी हैं। इनका जन्म हिमालयों के गोद में रहनेवाले उत्तरा खंड के अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी नामक गांव में सन् 1900 ई.में हुआ था । इनकी मृत्यु सन 1977 ई. में हुई ।
संदर्भ : इसमें पराधीनता काल में भारत की जो दुर्दशा थी, उसका भावपूर्ण तथा यथार्थ चित्रण किया गया है।
व्याख्या : कवि वर्णन करते हुए कहते है कि भारतमाता की तीस करोड़ सन्तान गरीबी के कारण नंगे बदन है, ये आधा पेट भोजन मिलने से व्यथित, शोषण से ग्रस्त तथा प्रति रोध करने में असमर्थ हैं। ये अन्धविश्वासों से ग्रस्त होने से अज्ञानी हैं, असभ्य, अशिक्षित एवं गरीब हैं। ये अत्याचारी के सामने सदा झुके हुए – दबे हुए रहते हैं।
विशेषताएँ : * इस कविता में कवि का वर्णन अद्भुत है।
* सुमित्रा नंदन पंत जी की भाषा सरल है।
* पंत जी प्रकृति के बेजोड़ कवि माने जाते हैं।
* पराधीन भारत की दुर्दशा का वर्णन अत्यंत चित्रात्मक रूप से किया गया है।
4)राहु ग्रसित ..... गीता प्रकाशिनी ।
कवि परिचय : "भारत माता" नामक इस कविता के कवि श्री 'सुमित्रा नंदन पंत' जी हैं। इनका जन्म हिमालयों के गोद में रहनेवाले उत्तरा खंड के अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी नामक गांव में सन् 1900 ई.में हुआ था । इनकी मृत्यु सन 1977 ई. में हुई ।
संदर्भ : इसमें पराधीनता काल में भारत की जो दुर्दशा थी, उसका भावपूर्ण तथा यथार्थ चित्रण किया गया है।
व्याख्या : कवि वर्णन करते हुए कहते है कि वि देशी शासकों और शोषकों से भारत माता का परिवेशचिन्ता ग्रस्त रहा ,
उसके सामने कहीं कोई आशा की कि रण नहीं है,निराशा -चिन्ता से उसकी भौंहें मुडी हुई व नेत्र झुके हुए हैं। इस कारण भारत माता के मुख की शोभा छाया ग्रस्त या कुहरे से ग्रस्त चन्द्रमा के समान एकदम धूमिल है।
विशेषताएँ : * इस कविता में कवि का वर्णन अद्भुत है।
* सुमित्रा नंदन पंत जी की भाषा सरल है।
* पंत जी प्रकृति के बेजोड़ कवि माने जाते हैं।
* पराधीन भारत की दुर्दशा का वर्णन अत्यंत चित्रात्मक रूप से किया गया है।
5)पंचशील रत...... जीवन विकासिनी ।
कवि परिचय : "भारत माता" नामक इस कविता के कवि श्री 'सुमित्रा नंदन पंत' जी हैं। इनका जन्म हिमालयों के गोद में रहनेवाले उत्तरा खंड के अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी नामक गांव में सन् 1900 ई.में हुआ था । इनकी मृत्यु सन 1977 ई. में हुई ।
संदर्भ : इसमें पराधीनता काल में भारत की जो दुर्दशा थी, उसका भावपूर्ण तथा यथार्थ चित्रण किया गया है।
व्याख्या : हे भारत माता ,तुम्हारी संतान पंचशील में लीन है,और विश्व शांति के व्रतधारी हैं। युग - युगों से
हमारे गृह-आंगन और धन का हरण हो रहा है । यह भारतवासी कब जागृत होंगे । यह जन कब प्रगति पथ पर चलेंगे । हे जीवन विकासिनी । सोचो तुम सदा अपनी सोच में ही मगन रहती हो ।अपने पुत्रों को जागृत कर ,प्रगति मार्ग पर अग्रसर करो ।
विशेषताएँ : * इस कविता में कवि का वर्णन अद्भुत है।
* सुमित्रा नंदन पंत जी की भाषा सरल है।
* पंत जी प्रकृति के बेजोड़ कवि माने जाते हैं।
* पराधीन भारत की दुर्दशा का वर्णन अत्यंत चित्रात्मक रूप से किया गया है।
6)उसे चाहिए लोह संगठन....रस विलासिनी ।
कवि परिचय : "भारत माता" नामक इस कविता के कवि श्री 'सुमित्रा नंदन पंत' जी हैं। इनका जन्म हिमालयों के गोद में रहनेवाले उत्तरा खंड के अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी नामक गांव में सन् 1900 ई.में हुआ था । इनकी मृत्यु सन 1977 ई. में हुई ।
संदर्भ : इसमें पराधीनता काल में भारत की जो दुर्दशा थी, उसका भावपूर्ण तथा यथार्थ चित्रण किया गया है।
व्याख्या : भारतवासी संगठित होकर विदेशियों को आक्रमण से संघर्ष करें ।आज भारतवासियों को सुंदर तन, श्रद्धा से दीप्त मन, धरती के प्रति सतत् अथक् - समर्पण चाहिये। भारत माता सारी धरती पर तुम अपनी प्रकृति से और कला ओं से सतत् विलासित हो और आनंद रस लीन होनेवाली विलासिनीहो ।
विशेषताएँ : * इस कविता में कवि का वर्णन अद्भुत है।
* सुमित्रा नंदन पंत जी की भाषा सरल है।
* पंत जी प्रकृति के बेजोड़ कवि माने जाते हैं।
* पराधीन भारत की दुर्दशा का वर्णन अत्यंत चित्रात्मक रूप से किया गया है।
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