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और वह पढ़ गई - डॉ. कुसुम वियोगी


                            और वह पढ़ गई 

                                                                                                  - डॉ. कुसुम वियोगी (click here video )

                                      




1)"और वहा पढ़ गई" कहानी का सारांश लिखिए?
ज)लेखक का परिचय : डॉ. कुसुम वियोगी का जन्म 9 अक्तूबर, 1955 में उत्तर प्रदेश के हाथरस मे हुआ । डॉ. वियोगी जी ने बी.ए., एम.ए तथा एल. एल. बी की शिक्षा प्राप्त की। दलित साहित्य में विशेष रुचि रखने वाले  'अक्षर-अक्षर आग',  'अंतिम बयान' आदि कहानी संग्रह प्राशित हुए । इनके अलावा मराठी, पंजाबी एवं रूसी भाषा में कविताओं का भी अनुवाद किया है । 'आधुनिक बौद्ध आंदोलन से अनुप्राणित लोक-साहित्य' विषय पर इन्होंने अपना शोध कार्य किया। अनेक पत्र एवं पत्रिकाओं का संपादन किया। 
सारांश : 'और वह पढ़ गई' डॉ. कुसुम वियोगी की एक ऐसी लड़की की कहानी है जो निरंतर पढ़ने की जिज्ञासा रखती है। दलित होने के नाते जिन - जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, उन सबका सजीव चित्रण इस कहानी में किया गया है। इस कहानी की नायिका अपनी तीव्र जिज्ञासा को बनाये रखते हुए अपनी इच्छा-पूर्ति के लिए दिलो-दिमाग से परिश्रम करके सफलता हासिल करती है। एक तरह से इस कहानी के माध्यम से लेखक दलितों को शिक्षा के प्रति प्रेरणा जगाने की कोशिश करते है ।
'चेतना' एक दसवीं कक्षा की लड़की है,जो खूब पढ़ने की इच्छा रखती है, लेकिन कहानी के आरंभ में उसकी माँ उसे काम पर न आनेपार भरे बाजार में झाड़ू से सब के सामने खूब पिटायी करती है। नादान लड़की एक बात भी नहीं कह सकती है। इतने में लेखक की बेटी वहाँ लेखक को बुलाकर लाती है,और चेतना को अपने घर बुलाकर लेजाने में सफ़ल हो जाते है। साथ में उसकी माँ श्यामो भी वहाँ आजाती है। वह दलित होने के कारण अपना पुश्तैनी काम के बारें में और उसके पति के नशे में डूबकर बेखबर होने के बारे में सारी कहानी सुनाकर चली जाती  हैं। 
'चेतना' भी धीरे-धीरे अपने बारें में ,अपनी पढ़ाई  की हुनर के बारें में बताकर अपने घर और आस-पास के वातावरण का वर्णन करती है। जो एक दलितबस्ती में रहती है,वहाँ हमेशा नशेखोरों , सुअर चराने वालों तथा दुर्गंध से भरे हवाओं के बीच में वह पल रही है । 
वह लेखक से अपने आत्मविश्वास को मजबूत करके कहती है कि इन सभी कठिनयइयों के बीच में ही किसी भी तरह पढ़ना चाहती है। लेखक उसे धैर्य के वचन कहते है। और दलितों के उद्धार के लिए बाबासाहेब अंबेडकर से  किए गए कार्यों को भी बताकर उसमें नई चेतना जागते हैं। एक दिन अचानक वह भयानक बीमारी का शिकार हो जाती है, लेकिन अपना परिवार अशिक्षित होने के कारण उसे झाड़ू- फूँक और सयाने जादूगरों को झेलना पड़ता है। इतने में लेखक को खबर मिलते ही उसकी दुर्दशा को देखकर वे चालित हो जाते हैं,सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाते है। 
कई साल बीतजाते है, फिर लेखक चेतना को कभी नहीं देखा , एक दिन अचानक वह हाथ में मिठाई लेकर आजती है, बताती है कि वह अब बी.ए. पास हो चुकी है। लेखक बेहद खुश हो जाते हैं। और कहते हैं इतनी सारी तकलीफ़ों को झेलकर भी "और वहा पढ़ गई" । उन्हें फिर वही झाड़ू वाला दृश्य याद आजता है। 
विशेषताएँ : 
*  कहानी का वातावरण अत्यंत  सहज  है। 
* लेखक की भाषा शैली अद्भुत है। 
* कहानी में वर्णित पात्र आँखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाते हैं। 
* लेखक दलितों की व्यथा को उनकी दयनीय स्तिथि को समझाने में  सफ़ल हुए हैं। 
2)' चेतना' का चरित्र चित्रण कीजिए।
ज)'चेतना' और वह पढ़ गई कहानी का मुख्य पात्र है, जो अपनी पुश्तैनी काम को तिरस्कार करके पढ़ाई में  दिलचस्पी दिखती है। वह एक ऐसे वातावरण में पलती है, जहां दारूबाज़ों  का अड्डा है, सुअर चराये जाते हैं, जिनकी आवाज़ों से कान फट जाते हैं। चारों तरफ़ गंदगी ही गंदगी दिखाई देती है। ऐसी स्थिति में वह एक दिन बाजार में अपनी माँ से मार खाती हुई दिखायी देती हैं। लेखक की बातों से उसमें धैर्य एवं आत्मस्थैर्य की भावना  बढ़ती है। जिससे वह उत्साहित होकर घर चली जाती है। कुछ ही दिनों में वह बीमार भी होजाती है। लेकिन लेखक उसे अस्पताल में भर्ती कर देते हैं। इस प्रकार वह अंत में बी.ए .पास होकर लेखक के पास मिठाई लेकर आती है। 
दलित बालिका होने के कारण वह अपनी माँ की तरह काम करने को पसंद न करके  शिक्षित बनकर  समाज के लिए एक नमूना बन जाती है। 
3)कहानी में वर्णित सामाजिक समस्या का वर्णन कीजिए?
ज) *शिक्षा के क्षेत्र में दलितों पर लगाये जाने वाले प्रतिबंधों का विरोध करते हुए उनके उद्धार को लक्ष्य बनाकर लिखी गई कहानी है यह। इस कहानी की नायिका अपनी तीव्र जिज्ञासा को बनाये रखते हुए अपनी इच्छा-पूर्ति के लिए दिलो-दिमाग  से परिश्रम करके सफलता हासिल करती है। 
इस पूरी कहानी में उस लड़की के आस-पास के वातावरण का वर्णन करके लेखक दलित बस्तियों की हालत को आँखों के सामने प्रत्यकस करदिए हैं। एक ओर अशिक्षा और गरीबी, घर की जिम्मेदारी को संभालने के लिए लड़की की माँ  अपने पुश्तैनी काम को करते रहना, लेकिन दूसरी ओर इसी अशिक्षा को दूर करने के लिए लड़की 'चेतना ' पढ़ाई में दिलचस्पी दिखाना ,इन सभी विषयों को अत्यंत सहज रूप में वर्णन किया गया हैं। 
* इसके साथ ही सामज में फैली हुई दरूबाज़ी और नशाखोरी ,शोर और सुवरों के बीच पलता हुआ दलित गरीबों का जीवन,उन्हीं आवाज़ों के बीच छोटे- छोटे पिल्लों को भागकर आनंदित होनेवाले गली के बच्चों का बचपन आदी दृश्यों का यथा वर्णन अत्यंत वास्तविक ढंग से किया गया है। 
एक तरह से इस कहानी के माध्यम से लेखक दलितों को शिक्षा के प्रति प्रेरणा जगाने की कोशिश करते है । इस प्रकार यह कहानी दलितों के सामाजिक जीवन का सजीव चित्र है । 

































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