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साहित्य की महत्ता (आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी )- कहानी

 


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जीवन-परिचय- हिन्दी साहित्य के अमर कलाकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन्‌ 1864 ई.  में जिला रायबरेली में दौलतपुर नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता पं० रामसहाय द्विवेदी सेना में नौकरी करते थे। आर्थिक दशा अत्यन्त दयनीय थी। द्विवेदी जी का व्यक्तित्व और कृतित्व, दोनों ही इतने प्रभावपूर्ण थे कि उस युग के सभी साहित्यकारों पर उनका प्रभाव था। वे युग-प्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठित हुए। हिन्दी साहित्य में वह युग (द्विवेदी युग) नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन्‌ 1938 ई.  में यह महान्‌ साहित्यकार जगत्‌ को शोकमग्न छोड़कर परलोक सिधार गया।

सारांश:

शास्त्र और साहित्य: ज्ञान राशि के संचित कोष को ही "साहित्य" कहते है। शास्त्र का संबध धर्म से है। धार्मिक ग्रन्थों से है, तथा धार्मिक विचारों से है। लेकिन साहित्य का संबंध जाती विशेष के है। भाषा की शोभा, श्रीसंपन्नता, उसकी मान मर्यादा उसके साहित्य पर ही निर्भर होती है। आंत में हम कह सकते है की शास्त्रों का साहित्य से अविनाभाव संबंध है।

मानव जीवन में साहित्य की अवशकता :जिस प्रकार मानव स्वस्थ रहने के लिए भोजन करता है। उसी प्रकार मस्तिष्क को स्वस्थ लिए साहित्य का रसास्वादन करना चाहिए। शरीर का खाद्य भोजनीय पदार्थ है। इसीलिए हमें साहित्य का सतत सेवन करना चाहिए , उसमे नेवीनता तथा पौष्ठीकता लाने के लिए उसका उत्पादन भी करते जाना चाहिए। जिस प्रकार विकृत भोजन से शरीर रुग्ण होकर बीमार पड़ जाता है, उसी तरह विकृत साहित्य से मस्तिष्क भी विकार ग्रस्त होकर रोगी बन जाता है।

साहित्य के द्वारा सभ्यता की परीक्षा लेना:सभ्य मानव के लिए साहित्य का निर्माण अनिवार्य है। सामाजिक शक्ति या सजीवता,सामाजिक आशक्ति या निर्जीविथा और सामाजिक सभ्यता तथा असभ्यता का निर्णायक एक मात्र साहित्य ही  है। जातियों की क्षमता और सजीवता साहित्य रूपी आईने में देखने को मिल सकती है।

विदेशी भाषाएँ और साहित्य का दृष्टिकोण:किसी भी राष्ट्र के लिए अपनी भाषा का साहित्य जाती और स्वदेश की उन्नति का साधक है। ऐसी नहीं है की हमें विदेशी भाषा सीखने की नही चाहिए। आवश्यकता और अनुकूलता होने पर हमे एक से अधिक सीख कर ज्ञानार्जन करना चाहिए।

साहित्य और विज्ञान विषय:मनुष्य अपने भावों एवं विचारों को साहित्य के माध्यम से व्यक्त करता है। विज्ञान मानव के लिए कई सुविधाएँ तैयार कर सकता है,लेकिन साहित्य के द्वारा ही मानव जीवन सुंदर बन सकता है। अंत  में हम कह सकते है की विज्ञयन से भी बढ़कर साहित्य को प्रधानता देना चाहिए।

                                                                प्रश्नोत्तर

1.साहित्य किसे कहते हैं? इसका शास्त्र से क्या संबंध है?

उत्तर) लेखक परिचय: साहित्य की महत्ता पाठ के लेखक “आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी” जी है। इस का जन्म रायबरेली जिले के दौलतपुर गांव में हुआ था। उन्हें अंग्रजी, संस्कृत, हिंदी, फ़ारसी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने "सरस्वती" पत्रिका के संपादक के रूप में 20 वर्ष तक सेवा की। इनके सात निबंध-संग्रह प्रकाशित हुए थे।

शास्त्र और साहित्य:

ज्ञान राशि के संचित कोष को साहित्य कहते है। शास्त्र का संबंध धर्म से है। धार्मिक ग्रंथ से है। तथा धार्मिक विचारों से है। साहित्‍य का संबंध जाति – विशेष के उत्कर्ष-अपकर्ष का, उसके उंच – नीच। भावो का, उसके एतिहासिक घटाना- चक्रों एवं राजनीतिक स्थिति से है l

धर्म के बारे में जितने भी ग्रांध हैं। वे सभी ग्रंथ साहित्य हैं। इन्हिं को शास्त्र कहते हैं। ऐसी प्रकृति के ग्रंथ साहित्य में उस समय के धार्मिक पद्धति, धार्मिक विचार तथा अचार व्यवहार का उल्लेख मिलता है।

साहित्य के पठान से सामान्य शक्ति या साजीवता, सामाजिक शक्ति या, निर्जीवता और सामाजिक सभ्यत तथा असभ्यता का पता चलता है। ऐसी तरह हम कह सकते हैं कि शास्त्र और साहित्य का अविनाभ संबंध है।

2. साहित्य की जीवन में क्या वस्तुकाता? साहित्य द्वार सभ्यता की परीक्षा किस प्रकार हो सकती है?

उत्तर) लेखक परिचय:साहित्य की महत्ता पाठ के लेखक “आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी” है। इस का जन्म रायबरेली जिले के दवलथपुर गांव में हुआ था। वे अंग्रजी, संस्कृत, हिंदी, फारसी बषाओ का ज्ञानता थे। उन्होंने सरस्वती पत्रीका के संपादक के रूप में २० वर्ष तक सेवा की। इन्होंने सात निबंध-संग्रह प्रकाशित हुए थे। ज्ञान राशि के संचित कोष को साहित्य कहते है।

मानव जीवन में साहित्य की आवश्यकता: ज्ञान राशि संचित कोष को ही साहित्य कहते हैं। जिस प्रकार मानव स्वास्थ्य रहने के लिए भोजन करता है, उसी प्रकार मस्तिष्क को स्वस्थ  रखने के लिए साहित्य का रसवदन करना चाहिए। अगर मस्तिष्क को इसे वंचित कर दिया जाए तो वह निष्क्रिय होकर धीरे – धीरे किसी काम का ना रह जाएगा। शरीर का खाद्य भोजन पदार्थ  है। मस्तिष्क का खाद्य साहित्य है। इसीलिये हमें साहित्य का सतब सेवन करना चाहिए उसमें नवीनता  तथा पौष्टिकता लाने के लिए उसका उत्पादन भी करते जाना चाहिए। वरना मस्तिष्क भी विकार ग्रस्त  होकर रोगी बन जाता है। साहित्य के द्वार सभ्यता की परीक्षा लेना सभ्य मानव के लिए साहित्य का निर्माण अनिवार्य है। 

3. विदेशी भाषा और साहित्य के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए?

उत्तर) किसी राष्ट्र के लिए अपनी भाषा का साहित्य जाति और स्वदेश की उन्नति का साधक है। अपनी भाषा को छोड़कर अन्य किसी भी विदेशी भाषाओं की रुचि रखने से कोई लाभ नहीं है । क्योंकि विदेशी भाषाओं में चूडांत ज्ञान प्राप्त कर लेने से या उसमे किसी भी उत्तम रचना करने पर भी विशेष सफलता प्राप्त नहीं हो सकती।  और अपेन देश को विशेष लाभ नहीं पहुंच सकता। ऐसा नही है की हमे विदेशी भाषाओं सीखना ही नही चाहिए। आवश्यकता, अनुकूलता, अवसर और अवकाश होने पर हमे एक से अधिक भाषाएं सीक कर ज्ञानर्जन करना चाहिए। द्वेष किसी भाषा से नही करना चाहिए l। लेकिन अपनी भाषा को और उसके साहित्य को प्रधानता देनी चाहिए। कयोकि अपना अपने देश का, अपनी जाति का उपकार और कल्याण अपनी ही भाषा के साहित्य की उन्नति से हो सकता है।

4. साहित्य और विज्ञान विषय पर एक छोटा लेख लिखिए।

ऊ. ज्ञान राशि संचित कोष को ही साहित्य कहते है। मनुष्य अपने भावों एवम् विचारो को साहित्य के माध्यम से व्यक्त करता है। साहित्य सृजन सभ्यता का सूचक है। साहित्य और विज्ञान का घनिष्ठ संबंध है। ज्ञान विज्ञान जीवन को सुगम बनाते हैं । साहित्य जीवन को सुंदर बनाता है । विज्ञान का काम है जीवन को शक्तिशाली तथा वैभव पूर्ण बनाना। लेकिन साहित्य का काम है जीवन को सुंदर एवं आकर्षक बनाना।

अगर साहित्य के रसास्वादन से मस्तिष्क को निष्क्रिय किया जाए तो वह किसी काम का नही रहेगा। इसलिए उसे हमेशा उत्तेजित रकनेकेलिए साहित्य का सतत सेवन करते रहना चाहिए। विज्ञान मानव के लिए कोई सुविधाएं तैयार कर सकता है, लेकिन साहित्य के द्वारा ही मानव जीवन सुंदर बन सकता है। वास्तव में मस्तिष्क को विकार करना ही मानव का संपूर्ण विकास कहलाता हैं।

अंत  में हम यह कह सकते है की विज्ञान से भी बढ़कर साहित्य को प्रधानता देना चाहिएं।

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