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पुरस्कार - जयशंकर प्रसाद

 


                            पुरस्कार

                                                       - जयशंकर प्रसाद



1)”पुरस्कार “कहानी की कथा वस्तु पर प्रकाश डालिए?

लेखक का परिचय:

कहानीकार बाबू जयशंकर प्रसाद जी है।इनका जन्म 30 जनवरी 1889 में हुआ, और मृत्यु 15 नवंबर 1937 में  हुई। वे एक बहुविधा रचनाकर थे। हिंदी साहित्य जगत में इनका स्थान महत्वपूर्ण है। आठवीं कक्षा के बाद स्कूली शिक्षा छोड़कर परंतु स्वधाया से हिंदी, इनका साहित्य राष्ट्रीय निर्माण से जुड़ा हुआ है। इनके  साहित्य का मूल स्वर है - "भारतीय संस्कृति"। कहानी के क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

सारांश : 

“पुरस्कार” कहानी की कथावस्तु ऐतिहासिक है। एक दिन के लिए महाराज कृषक बन जाते है,और इंद्र की पूजा होती है। उस साल राज्य के पूर्व मंत्री सिंहमित्र की एकमात्र कन्या मधुलिका का खेत महाराज की खेती के लिए चुन लिया जाता है। 

महाराज मधुलिका के खेत के बदले पुरस्कार के रूप में कुछ स्वर्ण मुद्राएँ  प्रदान करते है। पहली बार वह 'पुरस्कार' को ठुकराकर स्वीकार नहीं करती। मधुलिका राजा का प्रतिदान तिरस्कार कर दूसरे खेतो में काम करती है। तीन वर्ष बीत जाते है, मगध का विद्रोही और निवर्चित राजकुमार वर्षा की  रात में मधुलिका के आश्रम में आता है।मधुलिका अपने खेत की सीमा पर विशाल  वृक्षों की छाया में चुपचाप बैठ जाती  है।

अब वह अकेली होगाई थी। सवेरा हो जाता है मगध का राजकुमार अरुण मधुलिका से मिलने आता है। वह कोसल-नरेश से उसकी भूमि वापस दिलवा देने का वादा करता है। अब मधुलिका अरुण के जाल में फंस चुकी थी ,इसीलिए वह राजा के पास जाकर अपना 'पुरस्कार' वापस मांगती है। जिसमें राजमहल के दक्षिणी ओर नाले के पास वाला जंगल के कुछ बंजर हिस्से को प्राप्त कर लेती है। जिसके बाद रात के तीसरे पहर कोशल के श्रीवस्ती दुर्ग पर आक्रमण करने का षड़यंत्र रचा जाता है। 

अंत में मधुलिका में देशभक्ति की भावना जाग उठती है। उनकी योजना के बारे में कोशाल राज्य के सोनापति को बताती है। सेनापति की सावधनी से दुर्ग बच जाता है।

इससे राज बहुत क्रोधित होजाते हैं,अरुण और उसके साथियों को फांसी की सजा दी जाती है। राजा मधुलिका को पुरस्कार देने की घोषणा करते हैं।लेकिन मधुलिका कहती है कि -"मुझे भी वही पुरस्कार मिले जो अरुण को मिला है

"। यानी प्राण दंड मांगती है,और अरुण के पार जा खड़ी होती है।अब तीसरी बार मधुलिका "पुरस्कार" के रूप देश के हित के लिए ,अपने पापों का प्रायश्चित के लिए अपने आप को बलिदान देने तैयार हो जाती है। 

विशेषताए:

1. कहानी का भाषा तत्सम , सरल एवं मुहावरेदार  है।

2. इस कहानी में प्रसाद जी की शैली प्रतिबिंबित होती है।

3. कहानी कव्यमाय भाषा के रूप में आगे बढ़ती है।

4. पुरस्कार कहानी प्रसाद जी की उत्तम कहानियां में से एक है।

2) मधुलिका का चरित्र चित्रण कीजिए?

ज) लेखक का परिचय:

कहानीकार बाबू जयशंकर प्रसाद जी है।इनका जन्म 30 जनवरी 1889 में हुआ, और मृत्यु 15 नवंबर 1937 में  हुई। वे एक बहुविधा रचनाकर थे। हिंदी साहित्य जगत में इनका स्थान महत्वपूर्ण है।आठवीं कक्षा के बाद स्कूली शिक्षा छोड़कर परंतु स्वधाया से हिंदी, इनका साहित्य राष्ट्रीय निर्माण से जुड़ा हुआ है। इनके  साहित्य का मूल स्वर है भारतीय संस्कृती। कहानी के क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

मधुलिका जयशंकर प्रसाद के नारी  पात्रों में अनुपम और अद्भुत है। वह नायिका प्रधान कहानी "पुरस्कार" की नायिका है। उसके चरित्र की अनेक विशेषताएं हैं। कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं परम सुंदरी-मधुलिका मोहक सौंदर्य की स्वामिनी है। प्रसाद जी ने उसका वर्णन इन शब्दों में किया है। वह कुंवारी थीं , सुंदरी थी ,  राजकुमार अरुण उसके सौंदर्य पर मुग्ध होकर कहता है-“आह,कितना बोला सौंदर्य ! कितनी सरल  चितवन !”

स्वाभिमान और निर्भिक-

मधुलिका स्वाभिमानी है। वाह पूर्वजों की भूमि का मूल्य स्वीकार नहीं करती। वह परिश्रम करके जो कुछ मिलता है, उसी से गुज़ारा करती है। वह मधुर वृक्षों के नीचे पुरानी झोंपड़ी  में रहती है। मधुलिका निर्भिक है। वह महाराज और उनके मंत्री से स्पष्ट शब्दों में कहते हैं-“राज्य की  रक्षा के  अधिकारी तो सारी प्रजा होती है  मंत्रीवार-महाराज को भूमि समर्पण करने में तो मेरा कोई विरोध न था न है, परन्तु मूल्य स्वीकार करना असंभव है।

आदर्श प्रेमिका-

मधुलिका आदर्श प्रेमिका है। वह अरुण के पहले प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है। दूसरी बार इसका मगध से निर्वासित जानकार अपने सम्मान मानकर उसका प्रेम स्वीकार कर लेती है। प्रेम के पागलपन में वह स्वदेश के विरुद्ध अरुण का साथ देती है परन्त शीघ्र संभल जाती है। वह स्वदेश को विदेशों के हाथों जाने से बच लेती है परन्तु  अरुण को प्राणदण्ड मिलने पर अपने लिए भी प्राणदण्ड मांगकर अपने पवित्र प्रेम का परिचय देती है।

 द्वंद्व पूर्ण

मधुलिका का मन  देश प्रेम और अरुण से प्रेम के बीच द्वंद मैं पड़ा है। इस संघर्ष मैं विजय देश प्रेम की होती है। वह अपने प्रेम के लिए अपने जीवन का भी बलिदान देने को तैयार हो जाती है। महाराज के पुरस्कार माँगने का आग्रह करने पर कहती है-‘तो मुझे भी प्राणदण्ड मिले।‘ इस प्रकार मधुलिका प्रसाद जी की अनुपम सृष्टि है।

3) अरुण का चरित्र चित्रण पर प्रकाश डालिये?

ज) लेखक का परिचय:

कहानीकार बाबू जयशंकर प्रसाद जी है।इनका जन्म 30 जनवरी 1889 में हुआ, और मृत्यु 15 नवंबर 1937 में  हुई। वे एक बहुविधा रचनाकर थे। हिंदी साहित्य जगत में इनका स्थान महत्वपूर्ण है। आठवीं कक्षा के बाद स्कूली शिक्षा छोड़कर परंतु स्वधाया से हिंदी, इनका साहित्य राष्ट्रीय निर्माण से जुड़ा हुआ है। इनके  साहित्य का मूल स्वर है - "भारतीय संस्कृति"। कहानी के क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

अरुण का चरित्र चित्रण :

अरुण मगध का राजकुमार था। वह कौशल का उत्सव देखने आया था। वहाँ वाह कृषक बाला मधुलिका के प्रेम में पड़ गया था। उसके  चरित्र की प्रमुख विशेषता ये निम्नलिखित हैं।

माधुलिका का प्रेमी-

अरुण मगध का राजकुमार है। प्रथम दर्शन के समय से ही वह मधुलिका से प्रेम करता है।मधुलिका उसका प्रणय -निवेदन उसको प्रेम करने लगती है।

महत्वकांक्षी-

अरुण एक महत्वाकांक्षी युवक है।महत्वाकांक्षी होने के अरुण ही उसको मगध  से निर्वासित कार दिया जाता है। उसको पता है कि कैसल राज्य दुर्बल है। वह उसको अपने अधिकार मैं करना चाहता है।

स्वार्थी-

अरुण स्वार्थी है वह जनता है की कौशल नरेश माधुलिका को बहुत मानते हैं। वह मधुलिका को अपनी खेती के बदले श्रावस्ती दुर्ग के दक्षिण की भूमि महाराज से मांगने को प्रेरित करता है। वह इस भूमि से रात में दुर्ग पर आक्रमण करने का रस्ता बनाता है। अपने स्वार्थ के लिए ही  माधुलिका को अपने देश के प्रती विरोध काम करने को उकसाता है।

दंड का पत्र-

मधुलिका अपने भोलेपन  तथा प्रेम के आकर्षण के कारण अरुण के साथ देने को तैयार हो जाती है परन्तु अपनी भूल जानकार शीघ्र ही उसका तिरस्कार कर देती है। अरुण बंदी बनाया जाता है और उसको मृत्युदंड मिलता है। "अरुण" पुरस्कार कहानी का महत्वपूर्ण पात्र हैं। कथावस्तु के विकास मैं उसको योगदान है।

4) “पुरस्कार” कहानी मैं चित्रित प्रेम और युद्ध की द्वंद का चित्रण कीजिए?

ज) लेखक का परिचय:

कहानीकार बाबू जयशंकर प्रसाद जी है।इनका जन्म 30 जनवरी 1889 में हुआ, और मृत्यु 15 नवंबर 1937 में  हुई। वे एक बहुविधा रचनाकर थे। हिंदी साहित्य जगत में इनका स्थान महत्वपूर्ण है।आठवीं कक्षा के बाद स्कूली शिक्षा छोड़कर परंतु स्वधाया से हिंदी, इनका साहित्य राष्ट्रीय निर्माण से जुड़ा हुआ है। इनके  साहित्य का मूल स्वर है भारतीय संस्कृती। कहानी के क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

‘ पुरस्कार ’ कहानी में कहानीकार ने एक निर्मल प्रेम कथा के साथ  मानव मन की अनेक उदात्त वृत्तियों को गूँद दिया है। उसमें स्वाभिमान , प्रेम , महत्वाकांक्षा और प्रेम के साथ देश प्रेम की भावनाओं का प्रस्फुटन हुआ है।नारी के धर्म की एक गौरवमयी  झांकी प्रस्तुत करना प्रसाद जी का उद्देश्य है। उसके साथ ही व्यक्तिगत प्रेम से देशप्रेम की श्रेष्टता का इस प्रतिपादन करने की कहानी का उद्देश्य है।

‘ पुरस्कार ’  कहानी में माधुलिका के अरुण से प्रेम तथा देश प्रेम के बीच संघर्ष की कहानी है। प्रेम में  पड़कर मधुलिका को अति भ्रम हो जाता है और वह अरुण की सहयोगिनी बन जाती है। परन्तु शीघ्र ही उसे अपनी भूल का पता चल जाता है। वह देश प्रेम पर अपने प्रेम का बलिदान कर  देती है।इस तरह इस कहानी में प्रसाद जी ने देश प्रेम को सर्वोपरि मानकर उसके लिए त्याग-बलिदान करने का संदेश दिया है।

इस तरह कहानीकार ने एक नारी के हृदय में प्रेम युद्ध की अंतर्द्वंद को उजागर कर कहानी को सार्थक बनाए हैं।

 


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