बिंदा
- महादेवी वर्मा
1. 'बिंदा' पाठ के "पण्डिताइन चाची" का परिचय दीजिए ?
ज) 'पंडिताइन चाची' नामक पत्र महादेवी वर्मा की रचना "बिन्दा" में एक मुख्य पात्र हैं। पंडिताइन चाची जब रंगीन साड़ी में सजकर, लाल स्याही की सिंधूर लगाकर, आँखों में काजल डालकर, चमकीले कर्णफूल, गले की माला, नगदार रंग-बिरंगी चूड़ियाँ और घुघरू वाले बिछुए पहनकर सिंगार करती, तो लेखिका महादेवी वर्मा को वह गुड़िया की तरह बहुत अच्छी लगती है।
पंडिताइन चाची का स्वभाव विचित्र-सा था। उसके चिल्लाने की आवाजें बालिका महादेवी को सुनाई देती थीं। ‘उठती है या आऊँ, बैल के-से दीदे क्या निकाल रही है’, ‘मोहन का दूध कब गर्म होगा’, ‘अभागी मरती भी नहीं’ जैसे वाक्यों से वह बिन्दा को डाँटती रहती थी। वह बहुत ही कटु और उग्र स्वभाव की महिला थी।
2.'बिंदा' के बाल्य जीवन की घटनाओं का परिचय दीजिए ?
ज) 'बिंदा' नामक एक लड़की लेखिका की उस समय की बाल्य सखी थी। उसकी एक माँ थी जिन्हें सब लोग पंडिताइन चाची और 'बिंदा' नई अम्मा कहती थी। उनका व्यवहार विचित्र -सा जान पड़ता था। मैली धोती लपेटे हुए बिंदा ही आँगन से चौके तक फिरकनी-सी नाचती दिखाई देती। उसका कभी झाडू देना, कभी आग जलाना, कभी आँगन के नल से कलसी में पानी लाना, कभी नई अम्मा को दूध का कटोरा देने जाना आदि कार्यों को लेखिका चुपके से देखलेती । पंडिताइन चाची का कठोर स्वर गूंजने लगता, जिसमें कभी-कभी पंडित जी की घुड़की का पुट भी रहता था, तब न जाने लेखिका भी दुखी हो जाती थी।एक बार जब दो-तीन करके तारे गिनते-गिनते उसने एक चमकीले तारे की ओर उँगली उठाकर कहा- जिस अम्मा को ईश्वर बुला लेता है, वह तारा बनकर ऊपर से बच्चों को देखती रहती है और जो बहुत सजधज से घर में आती है, वह बिंदा की नई अम्मा जैसी होती है।
एक दिन चूल्हे पर चढ़ाया दूध उफना जा रहा था। बिंदा ने नन्हें-नन्हें हाथों से दूध की पतीली उतारी अवश्य; पर वह उसकी उंगलियों से छूट कर गिर पड़ी। खौलते दूध से जले पैरों के साथ दरवाजे पर खड़ी बिंदा का रोना देख लेखिका तो हतबुद्धि सी हो रही। पंडिताइन चाची से कह कर वह दवा क्यों नहीं लगवा लेती, यह समझाना उनके लिए कठिन था। उस पर जब बिंदा उनका हाथ अपने जोर से धड़कते हुए ह्रदय से लगाकर कहीं छिपा देने की आवश्यकता बताने लगी, तब तो उनके लिए सब कुछ रहस्मय हो उठा।उसे लेखिका अपने घर खींचकर लेजाती है,लेकिन छिपाने के लिए जगह न मिलने पर दोनों हड़बडाहट में गाय के लिए घास भरने वाले कोठरी में जा घुसीं, जिसमें भरी जाती थी। लेखिका तो सो गई। जब घास निकालने के लिए आया हुआ गोपी इस अभूतपूर्व दृश्य की घोषणा करने के लिए कोलाहल मचाने लगा,तब लेखिका आँखें मलते हुए पूछा ‘ क्या सबेरा हो गया ?’ माँ ने बिंदा के पैरों पर तिल का तेल और चूने का पानी लगाकर जब अपने विशेष सन्देशवाहक के साथ उसे घर भिजवा दिया।
3.'बिंदा' पाठ का सारांश लिखिए?
ज) लेखिका का परिचय : महादेवी वर्मा (26 मार्च 1907 — 11 सितम्बर 1987) अच्छी कवयित्री ही नहीं, बल्कि विशिष्ट गद्य लेखिका भी हैं।आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें "आधुनिक मीरा' के नाम से भी जाना जाता है।वे रेखाचित्र और संस्मरण लिखने में प्रवीण हैं। इनके रेखाचित्रों में संस्मरण की शैली भी पाई जाती है। अतः इनके रेखाचित्र गंगा-जमुना का सुंदर संगम है। महादेवी वर्मा ने ‘बिन्दा’ रेखाचित्र में अपने बचपन की सखी की दर्दभरी कहानी की मार्मिक तस्वीर खींची है।
महादेवी वर्मा ने ‘बिन्दा’ रेखाचित्र में अपने बचपन की सखी की दर्दभरी कहानी की मार्मिक तस्वीर खींची है। बिन्दा पाँच-दस मिनट के लिए अदृश्य हो जाती, तो पंडिताइन चाची शेरनी की तरह दहाड़ती थी और बिन्दा हिरन की बच्ची की तरह थर-थर काँप उठती थी। पंडिताइन चाची बात-बात पर बिन्दा को डाँटा करती थी। इतना ही नहीं, वह बिन्दा को भद्दी से भद्दी गालियाँ भी देती थी। लेखिका भी बिन्दा की उम्र की ही थी, पर बिन्दा की दुःख-भरी कहानी समझ नहीं पाती थी। वह घर में कोई भी काम नहीं करती थी, फिर भी उसकी माँ उसे नहीं डाँटती थी।
लेकिन बिन्दा दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह काम करती रहती थी, तब भी डाँट-फटकार सुनती थी। इसका कारण लेखिका का बाल-मन समझ नहीं पाया। बिन्दा ने एक दिन चाँदनी रात में चमकते हुए एक तारे को दिखाकर अपनी बाल-सखी से कहा कि लो, वह देखो। मेरी अम्मा आकाश में तारा बनकर चमक रही है।
लेखिका ने अपनी माँ से कहा कि माँ! तुम कभी भी तारा न बनना। तुम सदा मेरे पास ही रहो। लेखिका की माँ अपनी बेटी की बातें सुनकर सुन्न रह गई। बिन्दा को 'चेचक' की बीमारी लगी हुई थी। माँ-बाप उसे आँगन में खाट पर छोड़कर, घर के ऊपरी भाग में रहने लगते हैं, जब कि बिन्दा खाट पर अकेली पड़ी रहती थी। बिन्दा कई दिन तक खाट पर कराहती रही। एक दिन अचानक लेखिका को पता चला कि बिन्दा अपनी माँ से मिलने आकाश में चली गई है। लेखिका के मन में अपनी बाल्य-सखी बिन्दा का दर्द-भरा चेहरा हमेशा बना रहा। वह उस दिन बिन्दा को नहीं भूल पाई।
विशेषताएँ :
*'बिन्दा' महादेवी वर्मा की भावुक कहानी है। जिसे पढ़ते ही बिंदा पात्र आँखों के सामने झलकतता हैं।
*अपनी नई अम्मा के द्वारा किए जाने वाले दुष्कर्मों को सहन शायद बिंदा के अलावा और किसी से नहीं हो सकता ।
* बचपन का याद ताज़ा होते ही लेखिका का मन संवेदनाओं से भरगया है।
*पत्रों का वर्णन करने में लेखिका शत - प्रतिशत (100%) सफ़ल हुई हैं।
4.'बिंदा' पाठ के उद्देश्य को समझाइए ?
ज) 'बिन्दा' महादेवी वर्मा की भावुक कहानी है। जिसे पढ़ते ही बिंदा पात्र आँखों के सामने झलकता हैं।बचपन का याद ताज़ा होते ही लेखिका का मन संवेदनाओं से भरगया है। इस पाठ के द्वारा लेखिका हमें यह समझाना चाहती हैं की - यह जीवन हमें कई परिस्थितियाँ दिखाता है, परंतु जीवन में यदि हम कभी परेशान होते हैं तो सबसे पहले याद आती है माँ। क्या हो अगर यह माँ ना हो? और क्या हो अगर यह माँ, माँ जैसी ना हो?
महादेवी वर्मा की बहुत ही भावुक कर देने वाली यह कहानी 'बिंदा'।जिसमें लेखिका अपने बचपन की सखी की दर्दभरी कहानी की मार्मिक तस्वीर खींची है।लेखिका भी बिन्दा की उम्र की ही थी, पर बिन्दा की दुःख-भरी कहानी समझ नहीं पाती थी। वह घर में कोई भी काम नहीं करती थी, फिर भी उसकी माँ उसे नहीं डाँटती थी।बिन्दा दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह काम करती रहती थी, तब भी डाँट-फटकार सुनती थी।बिन्दा ने एक दिन चाँदनी रात में चमकते हुए एक तारे को दिखाकर अपनी बाल-सखी से कहा कि लो, वह देखो। मेरी अम्मा आकाश में तारा बनकर चमक रही है।
इस प्रकार इस पूरी कहानी में लेखिका ने यही समझाया है की अगर प्रकृति में माँ की कमी होजाती है, तो कैसी कठिनाइयों का सामना करना पढ़ता है, इसका वर्णन हमारी आँखों के सामने दिखायी देने लगता है।
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