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मित्रता -आचार्य रामचंद्र शुक्ल

                                                

                                                                मित्रता (निबंध) -आचार्य रामचंद्र शुक्ल (click here)

प्रश्नोत्तर:

 1.मित्र बनाना क्यों स्वाभाविक हैं? मित्रता की धुन किस अवस्था में अधिक सवार रहती है?

ज) मनुष्य सामाजिक प्राणी है।परिवार में रहते हुए भी उसे दूसरे लोगों की दोस्ती की जरूरत होती है । मित्र से बढ़कर मनुष्य का कोई और साथी नहीं हो सकता। मनुष्य के जीवन में बचपन से लेकर बुढ़ापे तक मित्र बनाए जाते हैं। छात्रावस्था में मित्रता की धुन सवार रहती है। मित्रता हृदय से उमड़ पड़ती है । बचपन की मित्रता में मधुराता, अनुरक्ति होती है, एवं अपार विश्वास होता है ।वर्तमान आनंद में दिखाई पड़ता है ।भविष्य के संबंध में लुभाने वाली कल्पनाएं मन में रहती है। बिगाड़ भी होता है ,आर्द्रता के साथ मेल भी होता है। कैसे क्षोभ भरी बातें होती हैं , आवेगपूर्ण लिखी - पढ़ी भी होती है। स्कूल के बालक की मित्रता से बढ़कर युवा पुरुष की मित्रता शांत, दृढ़ एवं गंभीर होती है।बातों में भी दोनों में भिन्नता होती है।बचपन की मित्रता मन को मोह लेती है।

2. मित्र बनाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

ज) किसी एक मामूली वस्तु को खरीदते समय जितनी सावधानी बरतते हैं,उससे भी अधिक मित्र के चयन के समय करना चाहिए। सच्चा मित्र बहुत मुश्किल से मिलता है।मित्र को बनाने से पहले व्यक्ति की अच्छी प्रकार परीक्षा करलेनी चाहिए। ताकी जीवन सुखी बने। किसी विद्वान का कहना है कि - विश्वासपात्र मित्र जीवन का एक औषध है। मित्र के चुनाव में विवेकता से काम लेना पड़ता है। उसके पूर्व आचरण पर ध्यान देना पड़ता है। उच्च और महान कार्यों में सहायता देना, धैर्य देना,और साहस दिलाना आदि मित्र के कर्तव्य हैं। मित्रता एक नई शक्ति की योजना है। मित्रता जीवन और मरण के मार्ग में सहारा के लिए हैं। मित्र ऐसा हो जिस पर भरोसा कर सके की उनसे कोई धोखा नहीं होगा।

3.सत्संगति के महत्त्व पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए?

ज) संसार में अनेक महा पुरुष मित्रों की बदौलत बड़े बड़े कार्य करने में सफल हुए हैं। मित्रों ने उनके हृदय के भावों को दृढ़ किया है। मित्रों ने कितने मनुष्यों के जीवन को साधु और श्रेष्ठ बनाया है।उन्हें मूर्खता और कुमार्ग के गड्ढों से निकालकर सात्विकता के पवित्र शिखर पर पहुंचाया है। इस तरह जिस उम्र में मित्र बनाना प्रारंभ होता है, यदि किसी हितैषी की सहायता मिल सके तो भविष्य उज्जवल बना रहता है । मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफलता निर्भर हो जाती है । क्योंकि संगत का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है । हमेशा याद रखना चाहिए कि हम कैसा साथ करते हैं । दुनिया जैसी हमारी संगति होगी , वैसे हमें समझेगी । पर हमें अपने कामों में भी संगत ही के अनुसार सहायता व बाधा पहुंचेगी।  इसीलिए सत्संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है । अगर किसी युवा पुरुष की संगति यदि पूरी होगी तो उसकी अवनति होगी । क्योंकि कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। इसलिए मित्रों के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए ।जो भविष्य जीवन के लिए आवश्यक है।

4.भारतीय इतिहास से कुछ आदर्श मित्रता के उदाहरण दीजिए?

ज) सिर्फ प्रशंसा के लायक मात्र मित्र नहीं है। या छोटे मोटे काम के लायक मात्र मित्र नहीं है। मित्र वह है जिस से स्नेह मिले। और सच्चा पथ प्रदर्शक हो जिस पर ही भरोसा कर सकें। मित्रता में आपस में सहानुभूति होनी चाहिए।यह ज़रूरी नहीं है कि दोनो में एक ही प्रकार की रुचि हों, या एक ही प्रकार के कार्य करते हों। भिन्न - भिन्न प्रकृति वालों में भी मित्रता रही है।

  • भारतीय इतिहास में देखें तो इसके बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे।

  • शांत प्रकृति वाले राम और उग्र एवं उद्धत स्वभाव वाले लक्ष्मण में अत्यंत प्रगाढ़ स्नेह था। 

  • उदार तथा उच्च आशय वाला कर्ण और लोभी दुर्योधन में कुछ विशेष  समानता नहीं थी।

  • उच्च आकांक्षा वाला चंद्रगुप्त ने युक्ति और उपाय वाले चाणक्य को साथी बनाया।

  • नीति विशारद अकबर ने मन बहलाने बीरबल को साथी बनाया।

  • उच्च और महान आशय के लिए सुग्रीव ने राम का सहारा लिया था।

इस तरह लेखक कई उदाहरणों के द्वारा आदर्श मित्रता के बारे में समझाए हैं।

5. मित्रता सारांश लिखकर विशेषताओं  पर प्रकाश डालिए?

उत्तर) लेखक का परिचय: आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (11 अक्टूबर, 1884ईस्वी- 2 फरवरी, 1941ईस्वी) हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है हिन्दी साहित्य का इतिहास, जिसके द्वारा आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता ली जाती है।वे नागरी प्रचारिणी पत्रिका के भी संपादक थे।

जीवन मैं मित्र की आवश्यकता:

मनुष्य सामाजिक प्राणी है।परिवार में रहते हुए भी उसे दूसरे लोगों की दोस्ती की जरूरत होती है । मित्र से बढ़कर मनुष्य का कोई और साथी नहीं हो सकता। मनुष्य के जीवन में बचपन से लेकर बुढ़ापे तक मित्र बनाए जाते हैं। छात्रावस्था में मित्रता की धुन सवार रहती है। मित्रता हृदय से उमड़ पड़ती है । बचपन की मित्रता में मधुराता, अनुरक्ति होती है, एवं अपार विश्वास होता है ।वर्तमान आनंद में दिखाई पड़ता है ।भविष्य के संबंध में लुभाने वाली कल्पनाएं मन में रहती है। बिगाड़ भी होता है ,आर्द्रता के साथ मेल भी होता है। कैसे क्षोभ भरी बातें होती हैं , आवेगपूर्ण लिखी - पढ़ी भी होती है। स्कूल के बालक की मित्रता से बढ़कर युवा पुरुष की मित्रता शांत, दृढ़ एवं गंभीर होती है।बातों में भी दोनों में भिन्नता होती है।बचपन की मित्रता मन को मोह लेती है।

मित्र बनाते समय सावधानी:

किसी एक मामूली वस्तु को खरीदते समय जितनी सावधानी बरतते हैं,उससे भी अधिक मित्र के चयन के समय करना चाहिए। सच्चा मित्र बहुत मुश्किल से मिलता है।मित्र को बनाने से पहले व्यक्ति की अच्छी प्रकार परीक्षा करलेनी चाहिए। ताकी जीवन सुखी बने। किसी विद्वान का कहना है कि...विश्वासपात्र मित्र जीवन का एक औषध है। मित्र के चुनाव में विवेकता से काम लेना पड़ता है। उसके पूर्व आचरण पर ध्यान देना पड़ता है। उच्च और महान कार्यों में सहायता देना, धैर्य देना,और साहस दिलाना आदि मित्र के कर्तव्य हैं। मित्रता एक नई शक्ति की योजना है। मित्रता जीवन और मरण के मार्ग में सहारा के लिए हैं। मित्र ऐसा हो जिस पर भरोसा कर सके की उनसे कोई धोखा नहीं होगा।

सत्संगति का महत्त्व :

संसार में अनेक महा पुरुष मित्रों की बदौलत बड़े बड़े कार्य करने में सफल हुए हैं। मित्रों ने उनके हृदय के भावों को दृढ़ किया है। मित्रों ने कितने मनुष्यों के जीवन को साधु और श्रेष्ठ बनाया है।उन्हें मूर्खता और कुमार्ग के गड्ढों से निकालकर सात्विकता के पवित्र शिखर पर पहुंचाया है। इस तरह जिस उम्र में मित्र बनाना प्रारंभ होता है, यदि किसी हितैषी की सहायता मिल सके तो भविष्य उज्जवल बना रहता है । मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफलता निर्भर हो जाती है । क्योंकि संगत का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है । हमेशा याद रखना चाहिए कि हम कैसा साथ करते हैं । दुनिया जैसी हमारी संगति होगी , वैसे हमें समझेगी । पर हमें अपने कामों में भी संगत ही के अनुसार सहायता व बाधा पहुंचेगी।  इसीलिए सत्संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है । अगर किसी युवा पुरुष की संगति यदि पूरी होगी तो उसकी अवनति होगी । क्योंकि कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। इसलिए मित्रों के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए ।जो भविष्य जीवन के लिए आवश्यक है।

भारतीय इतिहास से आदर्श मित्रता के उदाहरण: 

सिर्फ प्रशंसा के लायक मात्र मित्र नहीं है। या छोटे मोटे काम के लायक मात्र मित्र नहीं है। मित्र वह है जिस से से स्नेह मिले। और सच्चा पथ प्रदर्शक हो जिस पर ही भरोसा कर सकें। मित्रता में आपस में सहानुभूति होनी चाहिए।यह ज़रूरी नहीं है कि दोनो में एक ही प्रकार की रुचि हों, या एक ही प्रकार के कार्य करते हों। भिन्न भिन्न प्रकृति वालों में भी मित्रता रही है।

भारतीय इतिहास में देखें तो इसके बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे।

*शांत प्रकृति वाले राम और उग्र एवं उद्धत स्वभाव वाले लक्ष्मण में अत्यंत प्रगाढ़ स्नेह था। 

*उदार तथा उच्च आशय वाला कर्ण और लोभी दुर्योधन में कुछ विशेष  समानता नहीं थी।

*उच्च आकांक्षा वाला चंद्रगुप्त ने युक्ति और उपाय वाले चाणक्य को साथी बनाया।

*नीति विशारद अकबर ने मन बहलाने बीरबल को साथी बनाया।

*उच्च और महान आशय के लिए सुग्रीव ने राम का सहारा लिया था।

विशेषताएं:

* आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी जीवन में महत्वपूर्ण कार्य वाले मित्र के बारे में अच्छी तरह समझाएं हैं

* मित्रता के बारे में सविस्तारपूर्वक वर्णन करने में वे सफल हुए हैं।

* सत्संगति एवं कुसंगति का भेद अच्छी तरह से बताए हैं।

* कुछ भारतीय ऐतिहासिक उदाहरणों के द्वारा मित्रता का वर्णन करने में सक्षम हुए हैं।

*शुक्ला जी की भाषा सरल है एवं सुबोध है।



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