श्रीमति रजनी तिलक |
मादा भ्रूण (कविता) - रजनी तिलक
1) कवइत्री - रजनी तिलक जी का परिचय दीजिए ?
ज ) रजनी तिलक जन्म 27 मई 1958 को दिल्ली में एक दलित जाटव परिवार में हुआ था। पिता दर्जी का काम करते थे। परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। उन्हें बचपन से ही कई संघर्षों का सामना करना पड़ा जिसका असर उनकी शिक्षा पर भी पड़ा। किसी प्रकार उच्च माध्यमिक पूरी कर आईटीआई में व्यावसायिक शिक्षा के लिए प्रवेश लिया।
उनकी पहचान एक प्रतिबद्ध कवयित्री-लेखिका की भी रही है। उन्होंने 'भारत की पहली शिक्षिका' के रूप में सावित्री बाई फूले की जीवनी लिखी और 'सावित्रीबाई फूले रचना समग्र' का संपादन किया। 'अपनी ज़मी अपना आसमान उनकी आत्मकथा है जो चर्चित हुई है। उन्होंने एक कवयित्री के रूप में भी सबल संवाद किया है जहाँ उनके 'पदचाप' और 'हवा से बेचैन युवतियाँ' के रूप में दो काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं। उनका कहानी-संग्रह 'बेस्ट ऑफ करवाचौथ' शीर्षक से प्रकाशित है। तीन खंडों में प्रकाशित 'समकालीन भारतीय दलित महिला लेखन', 'डा. अंबेडकर और स्त्री चिंतन के दस्तावेज़' और 'दलित स्त्री विमर्श एवं पत्रकारिता' उनके संकलन-संपादन में प्रकाशित कुछ अन्य कृतियाँ है। उन्हें राष्ट्रीय महिला आयोग और 'दलित वीमन स्पीक आउट कांफ्रेस' द्वारा सम्मानित किया गया । 30 मार्च 2018 को दिल्ली में उनका निधन हो गया।
2) मादा भ्रूण कविता का सारांश लिखिए ?
ज) प्रस्तावना :- श्रीमती रजनी तिलक प्रमुख कवयत्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे नारी मुक्ति आन्दोलन, दलित महिला आन्दोलन, मानवाधिकार आन्दोलन में सक्रिय एवं विभिन्न संस्थाओं से संबद्ध हैं। 'करोडों पदचाप हूँ' उनका काव्य संग्रह है।
प्रस्तुत कविता 'मादा - भ्रूण' में कवइत्री अल्टरा साऊण्ड की मशीनों के द्वारा गर्भस्त शिशु का लिंग पहचान कर, मादा - जीव की हत्या करने पर अपनी अंतर्वेदना प्रकट करती हैं।
सारांश :- श्रीमती रजनी तिलक भ्रूण - हत्या पर वेदना प्रकट करती हुई कहती है - युवादम्पति विवाह होते ही बच्च्चों की तस्वीरें गढ़ने लगते हैं। मादा-जीव गर्भस्त होने पर उनकी भावनाएँ एवं उनके रिश्ते चटकने लगते हैं। मादा-जी के गर्भ में आते ही अल्टरा साऊण्ड की ओर उनकी नजर दौडती है। मशीनों के द्वारा जीव की लिंग पहचान होती है। साथ ही अल्टरा साउण्ड द्वारा पेशेवर डॉक्टर पहचान कर बताता है। माँ का वात्सल्य संवेदनहीन बन कर खामोश हो जाता है।
मानव मादा-शिशु की हत्या कर रहा है। पुरुष जन्म से मरण तक आद्यन्त अपना आधिपत्य चलाता रहता है। गर्भ से मृत्यु तक, शब्द से शून्यतक और सृष्टि से रचना तक पुरुष निरापद तथा स्वच्छन्द जीव है। संसार द्वन्द्वात्मक तथा संघर्षप्रद है। स्त्री और पुरुष के बीच आधिपत्य का बवंडर चलता रहेगा। तब उस बवंडर से जूझ कर एक नयी सत्ता अंकुरित हो उठती है। तब धरती की सांकले पाषाण जैसे पितृसत्ता को खण्डित कर नये युग का शिला लेख (इतिहास) लिखेगी।
उपसंहार :- संसार में प्रधानतया भारत में नारी-रक्षा सम्बन्धी अनेक कटु अनुभव हैं। भ्रूणहत्या महान पाप है। प्रकृति अथवा भगवान के दिये हुए शिशु की हत्या करने का अधिकार किसी को नहीं।
कवयत्री श्रीमती रजनी तिलक कहती हैं-यह पितृसत्तात्मक समाज अन्त होगा। नारी का आधिपत्य समाज पर होनेवाला हैं। उसका अंकुर उभर कर महान वृक्ष के रूप में फैलेगा।
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